abhivainjana


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Saturday 28 August 2021

सावन पर कुछ दोहे

 झूले सावन के पड़े,

गाए गीत हजार ।

बरखा के सुर ताल पर, 

धरा करे श्रृंगार ।। 

          मोती बन बूंदे गिरी,

           हरित पात पर आज 

          देख देख मुस्का रही

         लिए अजब अंदाज।।

  अंबर पर बादल सजे,

   ज्यूं मोती की थाल।

  गिर बूंद बन पात पर,

  हुई धरा खुश हाल।।

               गगन बना घनघोर हैं

               बूंद बनी उल्लास । 

              भीग  रहे तन मन सखी

                लो आया चौमास॥

नव वधु सी धरती सजी ,

 हरियाली चहुं ओर।

हर्षित उपवन गारहे,

देख सुखद ये भोर।।

                 डाल सजी  पाती हरी,

                     खिलते फूल सफ़ेद ।

                     सोच सोच हैरान सब

                       मिला न कोई भेद।।

                            ********"

Thursday 7 February 2019

देश भक्ति गीत


मनहरण धनाक्षरी   में ...देश भक्ति गीत 
   तन मन प्राण वारूँ  वंदन नमन करूँ 
गाऊँ यशोगान सदा   मातृ भूमि के लिए ..
 पावन मातृ भूमि ये वीरों और शहीदों  की 
 जन्मे राम कृष्ण यहाँ हाथ सुचक्र लिए ,
  ये बेमिशाल देश है संस्कृति भी विशेष हैं
, पूजते पत्थर यहाँ  आस्था अनंत लिए 
.शौर्य और त्याग की  भक्ति और भाव की
, कर्म पथ चले सभी हाथ में ध्वजा  लिए .....
महेश्वरी कनेरी 
**********

Thursday 11 January 2018

सर्दी ने ढाया सितम

 नस्कार मित्रो। नव वर्षा की शुभकामनाओं के साथ मै सर्दी का एक तौहफा लेकर आई  हूँ
 
 सर्दी ने ढाया सितम
ठिठुरती काँपती ऊँगलियाँ  
माने  नहीं छूने को कलम
कैसे लिख दूँ अब कविता मैं
अजब  सर्दी ने ढाया सितम
शब्द मेरे ठिठुरे पड़े हैं
भाव सभी शुन्य से  हुए हैं
कंठ से स्वर निकलते नहीं
लगता है सब जाम हुए है
धूप भी किसी भिखारिन सी
 थकी हारी सी आती है 
कोहरे की चादर ओढे कभी
कभी गुमसुम सो जाती है
घर से बाहर निकले कैसे
दाँत टनाटन बजते है
मौसम की मनमानी देखो
कैसे षड़यंत्र ये रचते हैं
गरम चाय और  नरम रजाई
अब तो यही सुखद सपने हैं
कैसे छोड़ूँ इन को अब मैं
यही लगते बस अपने है
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महेश्वरी कनेरी

Thursday 10 August 2017

दोहे


रे मन धीरज रख ज़रा ,समय बड़ा बलवान.
मिलना हो मिल जाएगा,बात यही तू मान |
                     
पढ़ना लिखना आगया ,कहते हो विद्वान ,
राग द्वेष मन में बसा .कैसा है ये ज्ञान |

तितली बोली फूल से ,दिन मेरे दो चार ,
जी भर के जी लूँ ज़रा बाँटू,रंग हजार |


समझ न पाय  भावना ,खूब छला बन नेक ,
होश में आय जब ज़रा, बचा न कुछ भी शेष |

निज हित में भूले सभी ,रिश्तो की सौगात ,
अपने ही करते रहे ,अपनो पर आघात |

प्रेम भाव मन में रखे .करे सभी का मान ,
जाने कब किस रूप में, मिल जाए भगवान

सहज सरलता खो गई ,झूठों का संसार

आडम्बर के भीड़ में ,सत्य हुआ लाचार 
      **********
      महेश्वरी कनेरी

Thursday 3 August 2017

संस्मरण (वो शाम )

                वो शाम .....
     हरे भरे लहलहाते गेहूँ के खेत ,उन खेतों के बीच थोड़ी सी चौड़ी पगडंडीनुमा कच्ची सड़क जो मुझे गाँव की याद दिला रही थी | इस खुबसूरत सी जगह जिसे बंजारावाला नाम से जाना जाता है |
     ये जगह मेरे लिए एकदम नयी थी घर ढूढने में मुझे परेशानी न हो सोच कर अतुल जी और उनकी बहन रेखा मुझे सामने ही मोड़ पर खड़े मिले | मैं करीब डेढ़ दो साल बाद अतुल जी के परिवार से मिलने आरही थी ,मन में थोड़ी झिझक थी मगर वही सरलता वही अपनापन ,कुछ भी न बदला था |  मेरा इस परिवार से मिलना भी एक अजब सा इत्तेफाक था |एक बार किसी मित्र के पुस्तक विमोचन में मै गई हुई थी  वहां बगल में बैठी हुई एक महिला मेरे नजदीक आकर  बोली ‘तुम  महेश्वरी हो न?’ मैंने कहा ‘हाँ ‘ उन्होंने फिर पूछा ‘तुम  एन .सी.सी. में थी ’? मैंने कहा ‘हाँ ‘ फिर पूछा ‘तुम लेफ्टी हो  न?’मैंने कहा ‘ हाँ ‘ अब मेरे आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा |थोड़ी देर तक तो मैंने उन्हें ध्यान से देखा,अब प्रश्न पूछने  की मेरी बारी थी मैंने पूछा ‘आप मुझे कैसे जानती हो ’? मुस्काते हुए वो बोली ‘मै रेखा शर्मा हूँ...  मै भी तुम्हारे  साथ एम.के.पी में पढा करती थी’ | अरे बाप रे !ये तो वर्षो पुरानी बात है जब मै इंटरमिडिएट या बी.ए. में रही होंगी |
मै समझ  नहीं पा रही थी कि बिना किसी संबंध या किसी  रिश्ते के एक साधारण से इंसान को कई सालो साल तक कैसे याद रख सकता है |ये तो मेरे लिए एक पहेली से कुछ बड़ कर ही थी  |  कुछ अलग सा सुखद अहसास सा जाग उठा मन में | कुछ इधर उधर की बात करते हुए ही रेखा जी ने मुझे बताया कि अतुल जी उनके भाई है और रंजना उनकी बहन है |वैसे अतुल जी को मै नवाभिव्यक्ति में काव्य गोष्ठी के दौरान मिली थी  ,मगर उनसे  बात नहीं हो पाती थी बस इतना ही जानती थी उन्हें जन कवि कहा  जाता है  उनके गाए गीत लोगो को अन्दर तक झकझोर देते है |मै उनसे कम, उनके गीतों से ज्यादा मिली हूँ
     बस  धीरे-धीरे मै अनायास ही मै  इस परिवार से  घुलने मिलने लगी,इन्होने भी मुझे बहुत मान सम्मान और प्यार दिया जैसे मै उनके परिवार की ही कोई हिस्सा थी | धीरे धीरे मुझे पता चला कि ये साधारण सा दिखने वाला परिवार वास्तव में असाधारण पृष्ट भूमि को संजोये हुए है ये तो एक  महान जन कवि स्वतंत्रा संग्राम के सेनानी श्रीराम शर्मा ‘प्रेम’ जी के पुत्र और पुत्रियाँ है  | इस परिवार से जुड़ कर मै अभिभूत हुई  सच में मेरे लिए ये बहुत ही गर्व की बात थी |
    अब उनके घर में होने वाले  हर  साहित्यिक चर्चा, काव्य गोष्ठी में प्राय मै उपस्थित रहने लगी | इस परिवार से मुझे बहुत कुछ सिखाने को मिला | अतुल जी मुझे हर बार प्रोत्साहित करते रहे है   कहानी हो या कविता मै हर बार कुछ नया ही ले जाने की कोशिश करती रहती ,हर बार मिलाने पर यही पूछते “और नया क्या लिखा?’
      होली के आस पास की ही बात है इस बार मै होली पर एक नयी कविता लेकर पहुंची थी  | सभी ने अपनी अपनी रचनाएं सुनाई अतुल जी का नया गीत ‘बंजारा मन को छू गयी ,रंजना ने बहुत ही सुन्दर होली गीत सुनायी ,अब मेरी बारी थी मैंने भी होली पर अपनी कविता| कविता सुनाने के बाद अतुल जी ने अचानक  मुझसे कहा इससे गा कर सुनाइए |मै थोड़ी घबरा गई क्यों कि कविता पाठ तो बहुत बार किया पर गाकर कभी नहीं ,हाँ अन्दर से मन जरुर गाने को करता था पर मुझे अपनी आव़ाज पर भरोसा नहीं था | मेरे झिझकने पर वे  मेरी दो  पंक्तियों को स्वर देकर गाने लगे, उनके गाते ही मेरी कविता  स्वत:ही गीत बन कर खिल उठी | मै बहुत खुश थी और उत्साहित भी मैंने मोबाइल में उस धुन को रिकार्ड कर लिया और वादा किया की घर जाकर प्रेक्टिस करुँगी और जल्दी ही गा कर सुनाउंगी |
     बस फिर क्या था एक धुन सी मुझे लग  गयी और मै दिन रात गाने की प्रेक्टिस करने लगी तीन चार दिन के अथक प्रयास से मैंने उस कविता को  गीत के रंगो में ढाल दिया, सच ही कहा था किसी ने सिखाने की कोई उम्र नहीं होती| इतना ही नहीं एक जगह होली के कार्यक्रम में मैंने उसे बेझिझक हो गाकर भी सुना दिया |ये बात जब मैंने रेखा और अतुल जी को बताई  तो वे लोग बहुत  खुश हुए और बोले ‘ कब सूना रही हो’? वास्तव में ये पल  मेरी  जिंदगी का एक अलग किन्तु सुखद सा अनुभव था क्यों कि मंच में समूह गान तो बहुत गाया था  परन्तु एकल गीत  पहली बार | |सच कहूँ तो ये अतुल जी की प्रेरणा और शुभकामनाओं का ही प्रतिफल था |होली से पूर्व की उनके घर की  वो  शाम मेरे जीवन की लिए एक नयी सुबह थी .....
     मरे पास शब्द नहीं है ...बहुत बहुत’ धन्यवाद अतुल जी  रेखा जी और रंजना जी मेरे जीवन में रंग भरने के लिए आभार
 शुभकामनाओं सहित
महेश्वरी कनेरी
७९ /१ नेशविला रोड देहरादून
 


Saturday 1 July 2017

यश गान हो


फूलों से मुस्काता उद्यान हो

प्रेम का जहाँ मधु रस पान हो

न मज़हब की कही बात हो

 धर्म हर इंसान का इंसान हो

 लिख दूँ लहू से वो गीत अमर

जिस पर माँ तुझे अभिमान हो

 हर हाथ में फहराएं पंचम तेरा

हर तरफ़ तेरा ही यश गान हो

             जय हिंद


         म कनेरी

Friday 6 January 2017

नव वर्ष

कतरा कतरा बन गिरता रहा,

 मेरे वक्त का एक एक पल

लम्हा   लम्हा  बन ढलता रहा

मेरा   हर  दिन प्रतिदिन  

  कुछ नए  सपने संजोए

    कुछ आस  उम्मीदें बटोरे

 आ गया फिर  नया वर्ष

 नए अंदाज में नए आगाज में

 देखते ही देखते सब कुछ बदलने  लगा 

जो बीत गया  वो यादें बन गई

कुछ खट्टी कुछ मीठी सी 

कुछ अधुरी कुछ अनकही सी 

फिर बुनेंगी आँखे ,वही सपने 
 

अपनी लाल लाल डोरों से

 फिर बोएँगे हम उमीदें 

हर उगते दिनो  के खेतो में

जैसे पतझड़ का दर्द भुला देती है

बसंत की नन्हीं फूटती कोंपलें

 अच्छे मौसम का इंतज़ार भी

 बांधे रखती है व्यथित मन को

इस बार कुछ नया हो ,कुछ अच्छा हो

इसी  चाहत को संजोए समेटे

रखता है ,ये मन  बावरा

यही  आस और विश्वास लिए

 करते है स्वागत नव वर्ष तुम्हारा

स्वागत नव वर्ष ,स्वागत तुम्हारा

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महेश्वरी कनेरी

सभी मित्रो को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं