abhivainjana


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Thursday 30 June 2011

जल्दी ही मिलती हूँ…


मेरे प्रिय मित्र बन्धु गण..
कुछ दिनों के लिये मैं बाहर जारही हूँ अत:  आप लोगों से सम्पर्क न हो पायगा , इसके लिये क्षमा चाहती हूँ ।लौट कर सभी कुछ तसल्ली से पढ़ूँगी.. इस बीच मुझे नहीं भूलाना । जल्दी ही मिलती हूँ…………धन्यवाद…

Saturday 25 June 2011

हर बार परीक्षा लेती है जिन्दगी………

“सारे दुख मेरे भाग्य में ही क्यों ? मेरे साथ् ही येसा क्यों होता है ?” यही सब नकारात्मक सोच हमारे विकास  की राह में बाधा  उत्पन्न करती हैं । सोच का मन से  बहुत गहरा संबंध है अगर हमारा मन प्रसन्न है तो सब कुछ अच्छा लगता है , अगर मन दुखी और परेशान है तो पूरा संसार बेगाना सा लगता है ,कुछ भी अच्छा नहीं लगता है । प्रस्तुत पंक्तियों में इसी भाव को 
उजागर करने की कोशिश की है ।“

हर बार परीक्षा लेती है जिन्दगी

क्यों कभी इतनी हैरान परेशान सी लगती है जिन्दगी   ?
कभी तो गहन अनुभूति लिए तृप्त सी लगती है जिन्दगी

क्यों कभी मुट्ठी में रेत सी फिसलती ,दिखती है जिन्दगी   ?
कभी ढलती संध्या भी, भोर की किरन सी दिखती है जिन्दगी

क्यों कभी पानी के बुलबुले सी अस्तित्वहीन लगती है जिन्दगी  ?
कभी तो अल्मस्त स्वच्छन्द नदी सी गुनगुनाती है जिन्दगी

क्यों कभी बादलों के बीच सहस्त्र बूँद सी छटपटाती है जिन्दगी  ?  
कभी तो बसंत में खिले फूलों की ताजगी लिए महकती है जिन्दगी

क्या है सब ?  क्यों करती है  भ्रमित, मुझे हर बार जिन्दगी
क्यों पग पग पर, इस तरह, हर बार परीक्षा लेती है जिन्दगी…………??



Saturday 11 June 2011

हे राह बटोही ...

हे राह बटोही , तू चलता चल
हे राह बटोही , तू चलता चल
जब तक साँस चले, तू चलता चल
रूप बदल- बदल, जग तूझे भरमाएगा
दृढ्ता का देख तेज़, स्वयं झुक जाएगा
 नई उमंग भर मन में ,नई तरंग जगा
 छाँट तंद्रा के बादल,फिर कर्म बोध जगा
सुख हो जाए बोना.दुख बन जाए बिछौना
कर लेना संधि उनसे फिर आगे बढ़ना
जीवन का सूनापन ,जब तूझे खलेगा
हर पथ पर तेरे,आशा का दीप जलेगा
टूटे हर विश्वास को, जोड़्ता चल
हे राह बटोही , तू चलता चल
जब तक साँस चले, तू चलता चल
हे राह बटोही , तू चलता चल...

Saturday 4 June 2011

ग्यारहवा पोस्ट… आभार


आप सभी का आभार  
हमारे यहाँ  ग्यारह नम्बर को शुभ तथा गतिमान कहा जाता है……और् यह बताते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है कि यह मेरा ग्यारहवा पोस्ट है। जो आप सभी के प्यार और शुभकामनाओ का प्रतिफल है ।जिसे मैं आभार के रुप में आप सभी भाई ,बहनों और प्यारे प्यारे बच्चों को समर्पित करना चाहती हूँ ।
खुद को खुद में ढ़ूँढा
उदास, सूनापन मिला..
खुद को बाहर भीड़ में ढ़ूँढा
अजनवी अकेलापन मिला..
जब खुद को ब्लांगर
की दुनिया में देखा, जैसे
सारा जहाँ मिल गया
एक नयी पहचान मिली
जीने का बहाना मिल गया
 ये कहानी  शुरु होती है ,पैतीस साल अध्यापन कार्य करने के बाद ,२००९ में जब मैं सेवानिवृत हुई। मुझे लगा ,मेरा जीवन कहीं रुक सा गया है ,मैं जैसे गति हीन होगई हूँ। मेरे पास करने को कुछ नया नहीं था । मुझे लगता था मैं अपनी पहचान खोने लगी हूँ । यही सब सोच- सोच मुझे डिप्रेशन सा होने लगा था।
तभी अचानक एक दिन गुगुल सर्च करते- करते एक हिन्दी ब्लांग में जा पहुँची । मुझे मालूम था कि कुछ लोग ब्लांग लिखा करते हैं, पर इस के बारे में कोई अधिक जानकारी नहीं थी । मुझे लगा… बस मुझे रास्ता मिल गया मुझे मेरी मंजिल मिल गई ।  
फिर डरते-डरते मैंने दिनांक ४.अप्रेल २०११ को अपना एक ब्लांग खोल ही दिया।सब् से पहले माँ सरस्वती का एक सुन्दर सा चित्र लगा कर मैंने प्रथम पोस्ट का श्रीगणेश  किया ।उसी दिन फिर एक लघु कविता ऋतुराज बसन्त” की दूसरी पोस्ट भी पब्लिश कर दी। ब्लांग का ये अनुभव मेरे लिए जितना रोमांचकारी था उतना ही अनजाना और अनविग्य भी ।
दो दिन बाद दिनांक ६अप्रेल २०११ को सबसे पहली टिप्पणी निशान्त मिश्रा जी द्वारा मिली ।जो मेरे लिये प्रेरणा का बहुत बड़ा श्रोत बन गया। दूसरी टिप्पणी दिनांक ८अप्रेल २०११को राजेन्द्र स्वर्णकार जी द्वारा मिली । ये दोनों ही टिप्पणियाँ मेरे लिए प्रसाद स्वरुप थीं । 
इन्हीं दो टिप्पणियों के माध्यम से मैं इनके ब्लांग में,और इनके ब्लांग से अन्य सथियों के ब्लांग का भ्रमण करने लगी । भ्रमण करते हुए मुझे बहुत सी नयी नयी जानकारियाँ मिलती रही और मैं आप सभी के स्नेह और प्यार का दामन पकड़े आगे बढ़ती रही ।आज दस प्रविष्ठियों में ८५  टिप्पणियाँ हैं, जो मेरे पोस्ट की शोभा ही नहीं, बल्कि मेरी हिम्मत और हौसला भी बढ़ा रही हैं ।
    मैं बहुत से भाई बहनों तथा बच्चों के ब्लांग्स को फौलो करती हूँ ।लेख ,संस्मरण, कविताएँ, गीत ,गज़ल, हास्य-व्यंग और बच्चों की मीठी-मीठी बातों के बीच जब मैं अपने को पाती हूँ तो लगता है,जीवन सार्थक होगया ।
    ये सफर कितना और कब तक चलता रहेगा ये वक्त ही बताएगा ,किन्तु आप सभी का सुझाव, स्नेह और शुभकामनाओ की मुझे हमेशा आवश्यकता रहेगी …….एक बार फिर धन्यवाद………………