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Friday 29 June 2012

तस्वीरे भी बोलतीं हैं..2













                                                                    महेश्वरी कनेरी

Friday 22 June 2012

देखो मंगल मेघ है आया

देखो मंगल मेघ है आया

इस भीषण सी गर्मी में
 शीतल पवन का सुखद सा झोंका
संग अपने संदेशा लाया
उठो ,करो स्वागत
देखो ,मंगल मेघ है आया
पत्ते –पत्ते शाख –शाख पर
धरती के कण-कण में
जीवन की हर धड़कन
हर पल हर क्षण
मधुर रस उसने घोला
उठो ,करो स्वागत
देखो मंगल मेघ है आया
दादुर मोर पपीहा नाचे
तपित धरती के भाग हैं जागे
मुर्छित दुर्वा ने खोले लोचन
फिर हरित होंगे वन उपवन
खुश्क होठों पर मुस्कान है छाया
उठो ,करो स्वागत
देखो मंगल मेघ है आया
**************
महेश्वरी कनेरी

Sunday 17 June 2012

मेरे पिता एक आदर्श गुरू



पिता एक सम्बल एक शक्ति है
सृष्टी मे निर्माण की अभिव्यक्ति है…
     साधारण से दिखने वाले एक अद्भूत व्यक्तित्व के मालिक थे मेरे पिता । संघर्ष और कठिनाइयों को अपने भाग्य में लिखवाकर लाए थे । कर्म पर विश्वास करने वाले भला भाग्य से कब हार मानते हैं । उन्होंने हमें भी यही शिक्षा दी । हमेशा यही कहते काम कुछ भी करो पर ईमानदारी से करो,कोई देखे या न देखे ईश्वर जरुर देखता है । उनका ये मूलमंत्र मैने हमेशा अपने बच्चों को भी देने की कोशिश की ….
     पिता जी बहुत ही शान्त सौम्य धैर्यवान और नेक दिल इंसान थे ।खाने पीने और अच्छा पहनने के शौकीन थे ।अच्छे और गुणीजनों से मिलना उन्हें अच्छा लगता था । हमें भी हमेशा यही कहा करते थे अच्छे लोगों से मिलना हमेशा अच्छा ही होता है । संगति व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव छोड़ जाता है । अपने हर बच्चे को अच्छी से अच्छी शिक्षा देना ही उनका सपना था ।
     एक बार हमारे पड़ोस मे रह रही एक महिला जिनके पति की असमय मृत्यु होगई थी उनके छोटे-छोटे बच्चे थे । पिताजी ने दौड़ भाग कर किसी तरह उनकी पैंशन लगवा दी । महिला खुश होकर धन्यवाद देने हेतु हमारे घर एक बड़ा सा मिठाई का डिब्बा लेकर आई,पिता जी उस वक्त घर पर नहीं थे । हम छॊटे छॊटे भाई बहन उस मिठाई के डिब्बे को देख ललचाने लगे ,जैसे ही वो महिला हमारे घर से गई हमने आव देखा न ताव  बस टूट पड़े । जब शाम को पिताजी घर आये और हमने बडी खुशी खुशी सारी घटना बता दी , गुस्से में उन्होंने हम से पूछा डिब्बा कहाँ हैं? हमने कहा वो तो हमने खा लिया । पिताजी उसी समय उलटे पैर बाजार गए और मिठाई खरीद कर उस महिला के घर दे आए और उनसे कहा ये पैंशन मौहल्ले में मिठाई बाँटने के लिए नही बल्कि तुम्हारे इन छोटे-छोटे बच्चों के लिए है । घर आकर उन्होंने हमें समझाते हुए कहा कि किसी की मजबूरी का फायदा नहीं उठाना चाहिए अगर किसी की सहायता करो तो निस्वार्थ भाव से करो । ये घटना मैं आज तक भूल नही पाई । ये घटना नही बल्कि जिंदगी की एक बहुत बड़ी सीख थी ।
    घर में सबसे बडी़ होने के नाते मुझे हमेशा कहा करते थे तू मेरा बेटा है । बाहर से वे कितने ही कठोर और हिम्मती दिखते हों पर मन एकदम बच्चा सा था । एक बार मैं शादी के कुछ दिनों बाद अचानक घ्रर पहुँची तो देखा पिता जी अकेले रेडियो के पास बैठे गाना सुन कर रो रहे थे ,गाना आरहा था “खुशी खुशी करदो विदा कि रानी बेटी राज करे महलो का राजा….” उस समय टी.वी नही था रेडियो का चलन था और ये गाना हर शादी ब्याह में बजाया जाता था
   पिताजी छोटी उम्र मे ही फौज़ मे भर्ती होगए थे । second world war में prisoner of war भी रहे । उस समय के किस्से हमें बहुत शौक से अकसर सुनाया करते थे । फौज़से रिटायर्ड होने के बाद भी परिवार के भरण पोषन के लिए उन्हें फिर से नौकरी करनी पडी़ । जीवन के अंतिम समय तक वे निरन्तर संघर्षशील रहे..




    वे हमारे लिए एक पिता ही नहीं एक आदर्श गुरू भी थे ।आज भी मैं जिन्दगी के हर मोड़ पर उन्हें अपने साथ ही पाती हूँ ।




                                  महेश्वरी कनेरी..

Thursday 14 June 2012

कमजोर नज़र

कमजोर नज़र



 खोगई है जिन्दगी यहीं कहीं


ढ़ूँढ़ रही हूँ , मिलती ही नहीं


शायद सोच की नज़र ही


कमजोर पड़ गई है…

*****

महेश्वरी कनेरी 



Tuesday 5 June 2012

बदलती दुनिया




बदलती दुनिया
 बदलती इस दुनिया में
पल-पल रंग बदलते देखा
बाहर से सब अच्छे हैं
अंदर छल कपट और धोखा
दो वक्त रोटी से
क्यों खुश नही इंसान
अधिक की चाहत में
कहाँ खो रहा इंसान
कैसी रीत चली जग में
पैसा रिश्ता पैसा भगवान
पैसे-पैसे के खातिर
आज बिक रहा इंसान
निज स्वार्थ ने
अपनों से तोड़ा नाता है
भाई-भाई का शत्रु बना
महाभारत फिर दोहराता है
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महेश्वरी कनेरी