abhivainjana


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Tuesday 28 January 2014

मौन जब मुखरित हो जाता है…..

मौन जब मुखरित हो
शब्दों में ढल जाता है
मिट जाते भ्रम सभी
मन दर्पण हो जाता है ।
मौन जब मुखरित हो जाता है…..
बोझिल मन शान्त हो
सागर सा लहराता है
वेदना सब हवा होजाती
भोर दस्तक देजाता है ।
मौन जब मुखरित हो जाता है…..
धैर्य मन का सघन हो
विश्वास सबल हो जाता है
पतझड़ मन बसंत बन
कोकिल सा किलकाता है ।
मौन जब मुखरित हो जाता है…..
सुखद अहसासों से भर
ह्रदय पुलकित होजाता है
विचारों में पंख लग जाते
नया इतिहास रच जाता है ।
मौन जब मुखरित हो जाता है…..


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महेश्वरी कनेरी

Tuesday 21 January 2014

खोटा सिक्का





खोटा सिक्का

चले थे खुद को भुनवाने

दुनिया के इस बाजार में.

पर खोटा सिक्का मान

ठुकरा दिया ज़माने ने

सोचा ! मुझमें ही कमी थी

या, फिर वक्त का साथ था

समझ पाये ,और चुप रह गए

पर चैन आया

और चल पडे

दुनिया को जानने

देखा ! तो जाना ,

दुनिया कितनी अजीब है

झूठ,मक्कारी और खुदगर्ज़ी

के पलड़े में हर रोज

इंसान यहाँ तुल रहा

पलड़ा जितना भारी

इंसान उतना ही ऊँचा

किन्तु....

मेरे पास तुलने के लिए

कुछ था

इसलिए नकारा गया

खोटा सिक्का जान

ठुकराया गया

पर खुश हूँ मैं

दुनिया के इस झूठ

और मक्कार भरे

बाजार में

मुझे नहीं बिकना

मैं खोटा ही

ठीक हूँ ….



                                                             महेश्वरी कनेरी

Friday 17 January 2014

अकेलापन

 अकेलापन

खिड़की से झांकता

एक उदास चेहरा

और, दूर खड़ा

पत्ता विहीन ,

ढ़ूँढ़ सा, एक पेड़

दोनों ही

अपने अकेलेपन

का दर्द बाँटते

 और

घंटों बतियाते



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महेश्वरी कनेरी

Thursday 9 January 2014

सर्दी ने ढाया सितम



ठिठुरती काँपती उँगलियाँ 
 
तैयार नहीं छूने को कलम

कैसे लिखूँ कविता मैं

सर्दी ने ढाया सितम

शब्द मेरे ठिठुरे पड़े हैं

भाव सभी शुन्य हुए हैं

कंठ से स्वर निकलते नहीं

लगता सब जाम हुए हैं

धूप भी किसी भिखारिन सी

 थकी हारी आती है 

कभी कोहरे की चादर ओढे

गुमसुम सो जाती है

गरम चाय, नरम रजाई

अब यही सुखद सपने हैं

कैसे छोड़ूँ इनको अब मैं

लगते यही बस अपने है

घर से बाहर निकले कैसे

दाँत टनाटन बजते है

मौसम की मनमानी देखो

कैसे षड़यंत्र ये रचते हैं


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महेश्वरी कनेरी

Sunday 5 January 2014

बच्चों के खातिर


मित्रों नये वर्ष में ये मेरा नया प्रयोग है..पहली बार कहानी लिखने का प्रयास किया है उम्मीद है मेरे इस प्रयोग को भी अप सभी स्नेह देंगे और साथ ही सुझाव भी ....धन्यवाद..

              बच्चों के खातिर  
    शापिग कामप्लेक्स में घुसते ही जोरदार स्लूट मारकर जिस गेटकीपर ने दरवाजा खोला,उसे देखते ही मैं अवाक रह गई।अचानक मुँह से निकल पड़ाअरे! श्यामलाल यहाँ कैसे ?..  कैसे हो?” उसके जवाब देने से पहले ही मैं फिर बोल उठीरिटार्ड हो गए क्या? वह झेपता हुआ सा हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया  
   श्याम लाल हमारे स्कूल में एक क्लास फोर कर्मचारी था । अपनी पत्नी और बच्चों के साथ आराम की जिन्दगी बसर कर रहा था
    अचानक कुछ समय बाद पता चला कि उसकी पत्नी को कैंसर होगया । हँसमुख श्याम लाल अब उदास रहने लगा । बहुत इलाज करवाया पर कोई फायदा नहीं,बीमारी अंतिम चरण पर थी।एक दिन पता चला कि उसकी पत्नी चल बसी ।
   पत्नी के इलाज में बेचारे श्याम लाल पर काफी कर्ज होगया था ।उसने हिम्मत नही छोड़ी दिन रात और भी अधिक मेहनत करने लगा। हम लोग अकसर उससे कहा करते –“अरे श्याम लाल कभी तो आराम कर लिया करो
जवाब में वह यही कहता –“साब ! बेटा पढ़ लिख कर अपने पैरों में खड़ा होजाए ,बेटी अपने घर चली जाए, बस तभी आराम करूँगा।
    इस बीच मेरा दूसरे शहर में तबादला होगया था और बारह साल बाद आज अचानक मुलाकात हो गई ।गहरे स्लेटी रंग की वर्दी पहने ठकठकाते काले बूट और रंगे हुए काले बाल ।उसका ये नया रुप देख कर मैं दंग रह गई थी ।
     उसकी चुप्पी देख कर मैंने फिर प्रश्न दाग दिया- बच्चे कैसे हैं ? बिटिया की शादी होगई?” अचानक मैंने देखा उसकी आँखे डबड़बा आई ।मैं हैरान थी इसे क्या होगया । मैने धीरज देते हुए उससे फिर पूछा–“अरे क्या हुआ? क्या बात है ? बताओ तो ?” मेरे इतने सारे प्रश्न पूछने के बाद उसने अपनी आँखें पोछी और धीरे से कहने लगा –“साब! क्या बताऊँ बेटा पढ़ाई पूरी न कर पाया ,गलत संगती में पड़ गया था  । उसे शराब और जुए की लत लग गई,आए दिन पुलिस पकड़ कर लेजाती है और मारती पीटती है छुड़वाने के लिए बार -बार उन्हें पैसे देना पड़ता है । बाप हूँ न कैसे देख सकता हूँ।“ “और बेटी..? उसकी शादी होगई ?” मैने फिर पूछा । आँखें पोछते हुए कहने लगा उसकी तो बड़े धूम-धाम से शादी कर दी थी दामाद भी अच्छा मिल गया था ,पर भाग्य देखो! एक बस दुर्घटना में उसकी मौत होगई और घर वालों ने उसे अपशगुनी कहकर घर से निकाल दिया, उसकी छह महिने की बच्ची भी है अब वह मेरे पास ही रहती है । सोचा था रिटार्ड्मेंट के बाद आराम करूँगा ,पर क्या करूँ ? इन बच्चों के खातिर नौकरी करने के लिए निकल पड़ा । बूढे को कौन नौकरी देता है साब ! इसी लिए बालों को रंग कर जवान होने का ढ़ोंग करता हूँ ।बच्चों के लिए क्या-क्या करना पड़ता है ?“ कहते कहते वह दौड़ कर फिर किसी दूसरे कस्टमर के लिए दरवाजा खोलने और स्लूट बजाने के लिए चल पड़ा और मै देर तक उसे देखती ही रही ।
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                  महेश्वरी कनेरी